Mastram story books 9 2019

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चाय पीकर स्कूल का काम करती. तभी भारत की ये नई पीढ़ी मानसिक, वैचारिक पतन से बच सकती है.

Can anybody have Hindi Book-Brij ke Bhakta By A. Anonymous May 28, 2017 Sir कानून कवरेज ki bhi pdf upload kr dete. हम स़िर्फ बात ही तो करते हैं.

एक सदी बाँझ

पमा मलिक वह आराम से आठ बजे सोकर उठती, चाय पीती, फिर नहा-धोकर सज-धजकर बैठ जाती. लोगों से चहक-चहककर बातें करती, क्योंकि मायका बगल में होने के कारण उसे माता-पिता से दूर होने का एहसास ही नहीं हुआ. ग्यारह-बारह बजे अपने कमरे में चली जाती और घंटों सोती रहती, केवल खाने व चाय के लिए निकलती. चाय ठंडी हुई जा रही थी, इसलिए विवश होकर मैं ही ऊपर पहुंच गई, जहां रिया अपनी छत पर खड़ी उससे बतिया रही थी. छत के उस कोने में खड़े तुम दोनों क्या खुसुर-फुसुर करते रहते हो. बचपन में साथ खेलते थे, मैंने ध्यान नहीं दिया. बड़े हुए तो एक ही कॉलेज में थे, सो मैं चुप रही, लेकिन अब, अब क्या बातें होती हैं. तुम व्यर्थ ही चिंता करती रहती हो. हमारे बीच ऐसा कुछ भी तो नहीं है. हम स़िर्फ बात ही तो करते हैं. अपने योग्य, सुंदर बेटे की पड़ोस की साधारण-सी रिया से नज़दीकियां मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रही थीं. रिया के बदले रुख पर मैं हैरान-परेशान रहती थी. आजकल आए दिन कभी पकौड़े की प्लेट, तो कभी अचार की शीशी लिए हाज़िर हो जाती थी. ऐसे ही एक दिन वो घर पर आ धमकी. इसे दिखाने आई थी या पकौड़े देने. बचपन में दिन-रात साथ खेलते बच्चों को युवावस्था में अलग कर देना मुश्किल होता है. हम तीन बहनों की संतानों में ऋषभ इकलौता था. पति के खानदान में भी वह सबसे बड़ा और लाड़-प्यार से पला था. उसकी शादी को लेकर हम सबने बड़े सपने संजोए थे, किंतु हमारे सारे अरमानों पर पानी फिर गया. जल्दी ही ऋषभ ने रिया से विवाह की घोषणा करके हम सबको गहरा आघात दिया. हज़ारों कमानेवाले ऋषभ की अकेली विवाहिता बहन रागिनी ने इसका पुरज़ोर विरोध किया. मैंने तो घर छोड़कर जाने की धमकी तक दे डाली, पर ऋषभ प्रभावहीन रहा. मैं ही अलग हो जाऊंगा. बस, रिया से शादी करवा दीजिए. सारे निर्णय तो ख़ुद ले चुका है. मुझे तो आपके विरोध का कारण समझ नहीं आ रहा है. हमारी जाति की है, पढ़ी-लिखी, धनी परिवार की है और सबसे बड़ी बात मुझे पसंद है. सिर चढ़ी- नखरैल, पता नहीं क्या देखा तूने उसमें. आपको मम्मी से ऐसे बात नहीं करनी चाहिए. अभी दो दिन में संदीप के पास चली जाएगी. तूने भी तो की थी अपनी पसंद से शादी, मैंने कोई विरोध किया था. जवान लड़का घर से चला जाए, यही चाहते हो क्या तुम लोग. यह सब मैं नहीं होने दूंगा. अब कोई एक शब्द नहीं बोलेगा. शादी, बारात तक मैं बिल्कुल शांत रही. मुंह दिखाई में पांच तोले का हार दिया, लेकिन यह देखकर मेरा मुंह उतर गया कि रिया के माता-पिता ने दान-दहेज काफ़ी कम दिया था. हालांकि बारातियों का स्वागत बढ़िया था. रिया की व्यक्तिगत सभी चीज़ें अच्छी क्वालिटी की थीं, पर हर पारंपरिक सास जैसे घर के अन्य सदस्यों व वर के लिए कीमती गिफ्ट व नक़द की अपेक्षा करती है, मैं भी कुछ उसी तरह की अपेक्षाएं पाले बैठी थी, पर ऋषभ के पिता का सख़्त निर्देश था कि मुंह खोलकर कोई मांग नहीं की जाएगी. बहरहाल, रिया बहू बनकर हमारे घर आ गई. जब तक घर रिश्तेदारों से भरा था, मैंने उसे आराम करने दिया. वह आराम से आठ बजे सोकर उठती, चाय पीती, फिर नहा-धोकर सज-धजकर बैठ जाती. mastram story books से चहक-चहककर बातें करती, क्योंकि मायका बगल में होने के कारण उसे माता-पिता से दूर होने का एहसास ही नहीं हुआ. ग्यारह-बारह बजे अपने कमरे में चली जाती और घंटों सोती रहती. केवल खाने व चाय के लिए बाहर निकलती. रिश्तेदार भी जा चुके थे. कुछ दिनों बाद ऋषभ-रिया लौटकर आए. काफ़ी गिफ्ट्स, मेवे-मिठाइयां लेकर आए थे. रिया शाम को ही मायके जाकर काफ़ी कुछ दे आई. ऋषभ, कल तुम्हें बैंक जाना है. रिया, कल का नाश्ता तुम्हें बनाना है. रिया ने सिर तो हिला दिया, लेकिन आशंकित थी. दूसरे दिन नाइटी उतारकर सूट पहनने और ब्रश करने में ही उसने अच्छा-ख़ासा समय लगा दिया, फिर जिस मंथर गति से वह परांठा सेंकने लगी थी, लगा कि आज ऋषभ ऑफिस ही नहीं जा पाएगा. हारकर मुझे ही सब्ज़ी छौंकनी पड़ी. रसोई में काम करते हुए मैं उसे फुर्ती से काम करने की सलाह देती रही, जिसे वह अनमने भाव से सुनती रही. अगले दिन उसे फ्राइड राइस और पनीर बनाना था. सारी तैयारियां करके मैंने उसे आवाज़ दी, तो पाया कि वह घर में कहीं है ही नहीं. अचानक सीढ़ियों पर उसके पदचाप ने मुझे सतर्क किया. वह हाथ में एक बड़ा डिब्बा लिए उतर रही थी. मेरी मम्मी ने आलू दम और पूरियां भेजी हैं. सुबह का नाश्ता हो जाएगा. कब तक कुछ सीखने की जगह डिब्बा लाती रहोगी. छत पर उसका मायकेवालों से लेन-देन चलता रहा. कभी-कभी तो वह कचौड़ी, हलवा-पोहा का डिब्बा लिए अपने कमरे में चली जाती और खा-पीकर छत से डिब्बा पुनः देने के अनुरोध के साथ लौटा दिया जाता. उसका पेट भरा रहता, तो खाना बनाने में उसकी दिलचस्पी कम रहती. मुझे ग़ुस्सा आता, लेकिन कुछ कह न पाती. ऋषभ की शह जो मिल रही थी उसे. नई-नवेली अर्द्धांगिनी के सौ ख़ून माफ़ होते हैं, लेकिन असली ग़लती रिया की मां कर रही थीं, सो एक दिन बिना पूर्व सूचना के मैं उनके mastram story books पहुंच गई. मेरी गंभीर मुखमुद्रा से वे तनिक विचलित दिखीं. वह आप पर निर्भर हो जाएगी और कभी अपने घर के प्रति समर्पित न होगी. एक मां की तरह सोचें, तो आपको लगेगा कि कुछ भी ग़लत नहीं हो रहा है. मैंने गहरी सांस ली और जाने के लिए उठ खड़ी हुई. बाहर तक मुझे रिया की भाभी छोड़ने आई. घर से सहमति मिलने पर उसने एक स्कूल में नौकरी कर ली. अब वह भी ऋषभ के साथ टिफिन लेकर निकल जाती. दोपहर में बना-बनाया मेरे द्वारा परोसा खाना खाकर सो जाती. शाम की चाय मैं ही बनाती. चाय पीकर वह खाने के लिए पूछती तो ज़रूर, पर बस रोटियां बनाकर चलती बनती. कभी-कभी सब्ज़ी, चटनी या रायता आदि बनाती. सब पेट में ही तो जाएगा. तुम सोचती हो, वह अभी से तुम्हारी तरह एक्सपर्ट हो जाएगी. रिया उनकी कृतज्ञ रहती और मुझसे कुपित. तीनों टाइम खाने की व्यवस्था, घर की सफ़ाई और सजावट, महरी के पीछे-पीछे घूमना, मैं चाहकर भी उससे कुछ न कह पाती. घर में एक और औरत के आ जाने से मेरी अपेक्षा बनी रहती कि रिया मेरी कुछ मदद करे. इसके लिए विरोध स्वरूप कभी सिरदर्द, तो कभी कमरदर्द का बहाना बनाकर पड़ी रही कि रिया कुछ करे, लेकिन इसका विपरीत प्रभाव पड़ा. उसके घर से सुबह-शाम टिफिन आने लगे, mastram story books टिफिन लेकर स्कूल जाती, वहां से लौटकर सीधे मायके जाती, खा-पीकर लौटती. कभी-कभी स्कूल में काम ज़्यादा होने पर मायके ही रुक जाती. अब घर में एक अलग ही सुगबुगाहट शुरू हो गई थी कि रिया ऋषभ के साथ अलग रहने की योजना बनाने लगी है, कहीं और, जहां से ऋषभ का बैंक पास पड़ता हो. मैं यह सब बातें सुनकर सन्न रह गई. मैं रिया के योजनानुसार तो नहीं चलूंगा. हां, उसके पापा का फ्लैट है, तो दो-चार दिन जाकर रह सकते हैं. छत पर कपड़े सुखाते रिया की भाभी से बात हुई, वह चुपचाप ननद की योजनाओं को सुनती रही, लगा जैसे किसी अलग ही सोच में गुम है. रिया की मेरे प्रति बेरुखी से मैं आहत थी. मैं भी आदर्श सास बनने में असमर्थ थी, सो उससे कुछ कहना भी मैंने छोड़ दिया, लेकिन इधर कुछ दिनों से मुझे रिया खोई-खोई-सी mastram story books. उसका चहकना, उछलना-कूदना, उधम मचाना सब बंद हो गया था. कुछ सोचती रहती, उसने छत के चक्कर लगाना और टिफिन लाने का क्रम भी रोक दिया था. सुबह उठकर चाय, खाना सबके लिए बनाती, अपना टिफिन लेकर मुंह लटकाए चली जाती. लौटने पर मायके न जाकर सीधे घर आती. दोपहर का दाल-चावल बनाने में मदद करती. परोसती, बटोरती, शाम को जल्दी सोकर उठ जाती. मैं चाय बनाती, तो उदास चेहरा लिए बगल में खड़ी रहती. चाय पीकर स्कूल का काम करती. वह मसाला पीसती, भरसक स्वादिष्ट सब्ज़ी बनाने का प्रयास करती, पतली रोटियां सेंकती, कोई मीठा ज़रूर बनाती. इस दौरान बराबर मेरा मुंह ताकती रहती कि मेरी प्रतिक्रिया क्या है. जिस लड़की को मैं समझा-समझाकर थक गई, उसमें अचानक इतना परिवर्तन कैसे आ गया. रिया कुछ समझाने की कोशिश करती है, तो भाभी हत्थे से उखड़ जाती हैं कि तुम अपने ससुराल में क्या कर रही हो, जो मैं यहां मरती रहूं. रिया की मां दिन-रात रोती रहती हैं, इसलिए वह बहुत परेशान रहती है. वह यह सब सोच-सोचकर हलकान है कि उसके मां-बाप कैसे अकेले रहेंगे, घर का ख़र्चा कैसे चलेगा. रात में वह ठीक से सोती भी नहीं. रिया का घर के कामों में मन mastram story books लगना, अकेले mastram story books की बात करना, फिर अचानक एक सुखद परिवर्तन, लेकिन यह परिवर्तन भी उसकी भाभी के अलगाववादी नीतियों के कारण हुआ, जो ठीक नहीं था. रिया ने जो कुछ यहां किया था, वही सब कुछ जब उसकी भाभी ने किया, तो वह परेशान हो गई. मैंने चुप्पी साध ली थी. रिया स्वयं मेरे नज़दीक आने की कोशिश करने लगी. स्कूल और घर दोनों संभालनेवाली बहू के प्रति मेरे मन में सहानुभूूति उमड़ने लगी. वही सारी बातें जब उसने मुझे बताईं, तो मैंने उसे समझाया कि यह सब कुछ दिनों की मुश्किलें हैं. कटुता कम होने पर सब ठीक हो जाएगा. भाभी मेरे बूढ़े मां-बाप को छोड़कर जाने की बात कहने लगी हैं. भइया की सैलरी से ही तो घर चलता है. भाभी मुझे अपने दोनों बच्चों बंटी-नेहा जैसा मानती थीं, इसीलिए तो मैं भी मायके से जुड़ी थी, अब न जाने क्यों उनमें ऐसा परिवर्तन आ गया. मुझे भी आप सबसे न निभा पाने का ताना देती रहती हैं. लगा रागिनी मेरे गले लगकर खड़ी है. यह नहीं सोच पाई कि मैं जो कुछ अपनी भाभी से अपेक्षा कर रही हूं, वैसी ही आशा आप सब भी मुझसे करते होंगे. जीवन का केवल एक पक्ष देखा था मैंने, लेकिन अब मैं सब कुछ समझने लगी हूं. आगे संक्षेप में यह कि अब मैं पति, पुत्र, बहू के साथ सानंद जीवनयापन कर रही थी. एकाध महीने बाद सुना कि रिया के मायके में भी सब कुछ ठीक हो गया है. रिया की भाभी ने अलग होने की रट छोड़ दी है और सास के साथ मेल-मिलाप पूर्वक रहने लगी है. घर में सब ठीक है न. तुम बताओ तुम्हारे परिवार में सब कुशल मंगल है न. वह तो मैंने और मेरी सास ने मिलकर गृह-कलह का नाटक किया था, ताकि रिया को अपने दायित्वों का एहसास हो. मैं किस प्रकार तुम्हें धन्यवाद दूं, समझ में नहीं आ रहा है. तुमने मेरे घर की ख़ुशी के लिए स्वयं को बुरी साबित करने का प्रयास किया. मेरे सास-ससुर तो सब जानते हैं, अभी रिया को कुछ नहीं पता चलना चाहिए. बाद में जानने पर कुछ न होगा. मैं कृतज्ञ थी, ज़िंदगी की गाड़ी हंसी-ख़ुशी, mastram story books लिए चलती रहती है, उसमें ठहराव नहीं आता, किंतु संतोष व कृतज्ञता के भाव तब उत्पन्न होते हैं, जब कोई शख़्स निःस्वार्थ भाव से दूसरों की मुश्किलें आसान करता है और गाड़ी पटरियों पर सरपट दौड़ने लगती है. अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करें —.

सारे निर्णय तो ख़ुद ले चुका है. मैंने चुप्पी साध ली थी. Story in detail: Rajaram Rahul Bagga , a small town bank clerk who dreams of travelling to Delhi and becoming a reputed writer. कुछ सोचती रहती, उसने छत के चक्कर लगाना और टिफिन लाने का क्रम भी रोक दिया था. सुबह अलसाई आंखे लेकर कॉलेज जाना और फिर क्लास लेने की जगह सीधे कैंटीन में चाय पीना जैसे एक रुटीन बन गया था.

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released January 19, 2019

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